गन्ने की आधुनिक खेती की सम्पूर्ण जानकारी
भारत में गन्ने की खेती वैदिक काल से होती चली आ रही है। गन्ने का व्यावसायिक उपयोग होता है। इसलिये गन्ने की आधुनिक खेती को व्यावसायिक खेती कहा जाता है। गन्ने की खेत से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से एक लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। गन्ने की खेती के बारे में कहा जाता है कि यह सुरक्षित खेती है क्योंकि गन्ने की खेती को विषम परिस्थितियां बिलकुल प्रभावित नहीं कर पातीं हैं।
साल में दो बार की जा सकती है गन्ने की खेती
भारत में गन्ने की फसल के लिए बुआई साल में दो बार की जा सकती है। इन दोनों फसलों को बसंतकालीन व शरदकालीन कहा जाता है। शरदकालीन फसल के लिए गन्ने की बुआई 15 अक्टूबर तक की जाती हैजबकि बसंत कालीन गन्ने की फसल के लिए बुआई 15 फरवरी से लेकर 15 मार्च तक की जाती है। बसंत कालीन गन्ने की आधुनिक खेती के लिए बुआई धान की पछैती फसल की कटाई के बाद, तोरिया, आलू व मटर की फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जा सकती है।गन्ने की खेती से होती है बड़ी कमाई
![sugarcane farming](https://www.merikheti.com/assets/post_images/m-2022-02-sugarcane-farming.jpg)
गन्ने की खेती बहुवर्र्षीय फसल है। एक बार बुआई करने के बाद कम से कम तीन बार फसल की कटाई की जा सकती है। यदि अच्छे प्रबंधन से खेती की जाये तो प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है। गन्ने की खेती से किसान भाइयों को मक्का-गेहूं, धान-गेहूं, सोयाबीन-गेहूं, दलहन-गेहूं के फसल चक्र से अधिक कमाई की जा सकती है।
गन्ने की आधुनिक खेती के लिए आवश्यक मिट्टी
गन्ने की फसल के लिए सबसे अच्छी मिट्टी दोमट मिट्टी होती है। इसके अलावा गन्ने की खेती को भारी दोमट मिट्टी में अच्छी फसल ली जा सकती है। गन्ने की खेती क्षारीय,अमलीय, जलजमाव वाली जमीन में नहीं की जा सकती है।किस प्रकार करें खेती की तैयारी
धान, आलू, मटर, आदि फसलों से खाली हुए खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से तीन चार बार जुताई करनी चाहिये। पुरानी फसलों के अवशेष व खरपतवार पूरी तरह से हटा देना चाहिये। बेहतर होगा कि हैरो से तीन बार जुताई करनी चाहिये। इसके बाद देशी हल से 5-6 बार जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिये। किसान भाइयों को इसके बाद खेत का निरीक्षण करना चाहिये यदि खेत सूखा हो तो पलेवा करना चाहिये। यह देखना चाहिये कि गन्ने की बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिये।बीज कैसे तैयार करें
गन्ने की फसल लेने के लिए अच्छे बीज को भी तैयार करना होता है। इसके लिए खेत में अच्छी तरह से खाद डालना चाहिये। गन्ने के बीज बनाने के लिए गन्ना लेते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि गन्ने में कोई रोग नहीं हो और जिस खेत में बुआई करने जा रहे हों तो उसी खेत का पुराना गन्ना नहीं होना चाहिये। प्रत्येक खेत के लिए नये खेत के गन्ने से बने हुए बीज का इस्तेमाल करना चाहिये। गन्ने का केवल ऊपरी भाग यदि बीज का इस्तेमाल किया जाये तो बहुत अच्छा होता है। ऊपरी भाग की खास बात यह है कि वह जल्द ही अंकुरित होता है। गन्ने के तीन आंख वाले टुकड़ों को अलग-अलग काट लेना चाहिये। प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए इस तरह के 40 हजार टुकड़े चाहिये। बुआई करने से पहले गन्ने के बीज को कार्बनिक कवकनाशी से उपचार करना जरूरी होता है।गन्ने की आधुनिक खेती की बुआई का तरीका
किसान भाइयों को बसंत कालीन फसल के लिए गन्ने के बीज की दूरी 75 सेमी रखनी होती है जबकि शरदकालीन गन्ने के लिए बीज की दूरी 90 सेमी रखनी होती है। दोनों ही फसलों के लिए रिजन से 20 सेमी गहरी नालियां खोदी जानी चाहिये। फिर उर्वरक मिलाकर मिट्टी को नाली में डालना चाहिये। दीमक और तना •छेदक कीड़े से बचाव के लिए बुआई के पांच दिन बाद ग्राम बीएचसी का 1200-1300 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। इस दवा को 50 लीटर पानी में घोलकर नालियों पर छिड़काव करके मिट्टी से बंद कर देना चाहिये। बुआई के बाद किसान भाइयों को लगातार गन्ने की खेती की निगरानी रखनी चाहिये। यदि पायरिला का असर दिखे और उसके अंडे दिख जायें तो किसी रसायन का प्रयोग करने से पहले किसी कीट विशेषज्ञ से राय ले लें। इसके अलावा यदि खड़ी फसल में दीपक लग गया हो तो 5 लीटर गामा बीएचसी 20 ईसी का प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में सिंचाई से समय इस्तेमाल करना चाहिये।सिंचाई प्रबंधन
बसंत कालीन गन्ने की खेती के लिए किसान भाइयों को विशेष रूप से सिंचाई पर ध्यान देना होता है। इस फसल के लिए कम से कम 6 बार सिंचाई करनी होती है। चार बार सिंचाई बरसात से पहले की जानी चाहिये और दो बाद सिंचाई बारिश के बाद की जानी चाहिये। तराई क्षेत्रों में तो केवल 2 या 3 सिंचाई ही पर्याप्त होती है।खरपतवार प्रबंधन
गन्ने की खेती में खरपतवार नियंत्रण के प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बुआई के बाद एक-एक महीने के अंतर में तीन बार निराई, गुड़ाई करनी चाहिये। हालांकि गन्ने की खेती में खरपतवार के नियंत्रण के लिए बुआई के तुरन्त बाद एट्राजिन और सेंकर को एक हजार लीटर पानी में प्रतिकिलो मिलाकर छिड़काव करने से खरपतवार नियंत्रण होता है लेकिन रसायनों के बल पर खरपतवार को पूरी तरह से नष्ट नहीं किया जा सकता है।रोगों की रोकथाम कैसे करें
किसान भाइयों को चाहिये गन्ने की खेती में रोगों की रोकथाम करने के विशेष इंतजाम करने चाहिये। जानकार लोगों का मानना है कि गन्ने की खेती में रोग बीज से ही लगते हैं। इसलिये गन्ने की खेती में लगने वाले रोगों की रोकथाम के लिए इस प्रकार से इंतजाम करना चाहिये।- गन्ने की खेती की बुआई के लिए निरोगी, स्वस्थ और प्रमाणित बीज ही बोयें।
- गन्ने की बुआई से पहले बीज को ट्राईकोडर्मा 10 को प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाएं और उससे बीज को उपचारित करें।
- बीज के लिए गन्ने को काटते समय ध्यान रखें और लाल और पीले रंग एवं गांठों की जड़ को निकाल दें। सूखे गन्ने को भी अलग कर लें।
- यदि किसी खेत में रोग लग जाये तो गन्ने की फसल के लिए 2-3 साल तक नहीं बोनी चाहिये।